अल्मोड़ा। कुमाऊं होली में चीर या निशान बन्धन का विशेष महत्व माना जाता है। वरिष्ठ होल्यारों के अनुसार होलिकाष्टमी के दिन मंदिरों, सार्वजनिक स्थानों पर एकादशी के शुभ मुहूर्त में गणेश पूजन के बाद विधि-विधान से चीर बन्धन किया जाता है। चीर बांधने के साथ ही होलियारों द्वारा खड़ी गायन होली का शुभारंभ किया जाता है। इस अवसर पर लम्बे लट्ठे कुमाऊं में पदम (पंय्या) की बड़ी शाखा को जमीन पर पेड़ की तरह लगाकर चीर बन्धन किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक घर से नये कपड़े के रंग बिरंगे टुकड़े चीर के रूप में लेकर बांधा जाता है। इस समय कैलै बांधी चीर हो रघुनंदन राजा तथा सिद्धि को दाता गणपति बांधी चीर जैसी होली गाई जाती है। कुमाऊं में चीर हरण की परम्परा है। दूसरे गांव, मोहल्ले के लोग इस चीर को चुराकर अपने यहां ले जाते हैं तो अगली होली से इस स्थान की होली में चीर बन्धन की परम्परा स्वत: समाप्त हो जाती है। इसलिए चीर को हरण होने से बचाने के लिए इसकी रक्षा की जाती है। जिसके लिए रात्रि में होली गायन कार्यक्रम किया जाता है और होलिका दहन के दिन इस चीर का भी विधिवत दहन किया जाता है। रविवार को श्री भुवनेश्वर महादेव मंदिर कर्नाटक खोला में गणेश पूजन के बाद विधि-विधान से चीर की पूजा अर्चना कर चीर बन्धन किया गया। इस अवसर पर आचार्य बृजेश पांडे, मोहन चंद्र कर्नाटक, देवेन्द्र कर्नाटक, हंसा दत्त कर्नाटक, लीलाधर काण्डपाल, पूरन चंद्र तिवारी, रमेश चंद्र जोशी, अनिल जोशी, गौरव कांडपाल, जीवन तिवारी सहित स्थानीय निवासी उपस्थित रहे।
श्री भुवनेश्वर महादेव में चीर बंधन के साथ शुरू हुई खड़ी होली

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