अल्मोड़ा। विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने किसानों की आय बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास को नई दिशा देने के उद्देश्य से एक और महत्वपूर्ण पहल की है। संस्थान और सतौन स्पाईस ग्रोवर्स एसोसिएशन, कोड़गा, जिला सिरमौर (हिमाचल प्रदेश) के बीच सोमवार को वी.एल. लहसुन-2 के उत्पादन और विक्रय के लिए औपचारिक समझौता किया गया। इस करार को पर्वतीय राज्यों के किसानों के लिए नई संभावनाओं का द्वार माना जा रहा है, जिससे उच्च उपज और गुणवत्तायुक्त उत्पादन के जरिये उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। वी.एल. लहसुन-2 एक लंबी अवधि वाली प्रजाति है, जिसे वर्ष 2012 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के लिए अधिसूचित किया था। इसकी विशेषताओं में बल्ब में 10 से 15 कलियां, बल्ब का औसत भार 30 से 38 ग्राम, भंडारण के दौरान कम हानि और अधिक उत्पादन क्षमता शामिल हैं। यह प्रजाति बैंगनी धब्बा और स्टेमफिलियम ब्लाइट जैसी बीमारियों के प्रति सहनशील है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में लहसुन की खेती को लंबे समय से प्रभावित करती रही हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार इस किस्म की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर तक की जा सकती है। निम्न और मध्य-पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी औसत उपज 150 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक पाई गई है। भंडारण की क्षमता और बाजार की मांग इसे किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बनाती है।
स्पाईस ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान सिंह ने कहा कि संस्थान द्वारा विकसित यह प्रजाति किसानों की आयवृद्धि में मील का पत्थर साबित होगी। उन्होंने विश्वास जताया कि उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार से किसानों को अधिक लाभ मिलेगा और वे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे। संस्थान के निदेशक लक्ष्मी कान्त ने एसोसिएशन को बधाई देते हुए कहा कि विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हमेशा किसानों की बेहतरी और पर्वतीय कृषि की उन्नति के लिए प्रतिबद्ध है। उनके अनुसार, वी.एल. लहसुन-2 जैसी प्रजातियों के प्रसार से न केवल आय में वृद्धि होगी बल्कि पर्वतीय कृषि उत्पादों की पहचान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होगी। समझौते के अवसर पर संस्थान की ओर से निदेशक लक्ष्मी कान्त, आईटीएमयू अध्यक्ष निर्मल हेडाऊ और फसल उत्पादन विभागाध्यक्ष बी.एम. पाण्डे ने हस्ताक्षर किए। वहीं एसोसिएशन की ओर से अध्यक्ष भगवान सिंह और सुरेश चन्द्र ने दस्तखत किए। इस मौके पर मौजूद वैज्ञानिकों और प्रतिनिधियों ने कहा कि ऐसे समझौते किसानों के लिए नई संभावनाएं खोलते हैं और वैज्ञानिक सहयोग व गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध होने से वे बेहतर उत्पादन कर सकेंगे।
